पीठ पर वार करते नहीं
प्यार में ही लुटे हैैं कई बार हम
अब करेंगे न आंखें कभी चार हम
नस्ल दर नस्ल आईं हैं खुद्दारियॉं
पीठ पर वार करते नहीं यार हम
दीन दुनिया यह जन्नत बनेगी तभी
छोड़ दें आज मिलकर यह तकरार हम
फेरते हैं जो पानी किए काम पर
क्या गिनाएं उन्हें आज उपकार हम
मसअले का कोई हल निकलता तो हो
फिर झुकाएं चलो खुद को इक बार हम
अब जिदें आपकी कौन पूरी करे
सामने रख चुके सारा संसार हम
बे तकल्लुफ़ हरिक राज़ कह दीजिए
राजदां हैं, नहीं कोइ अख़बार हम
दर्दो ग़म से हो’ फुर्सत, सुने तब कहीं
पायलों की तिरी आज झनकार हम