प्यार पे लुट जाती है ….
प्यार पे लुट जाती है ….
कितने शबनमी अहसासों की अनुभूति
एक शब्द में सिमट जाती है
स्वयं के अस्तित्व को
सदा उसमें समाहित करने में
ज़िंदगी गुज़र जाती है
वो शून्यता को भी अंगीकृत कर लेता है
स्वपनिल आकाश का
आकार रच लेता है
डूब जाता है
ख्वाबों के अथाह सागर से
अपने अहसासों के मोती समेट लाने को
युगों युगों तक
जिस्म दर जिस्म
रूह उस एक लफ्ज़ से लिपट
ज़िंदगी पाती है
बस इक प्यार के लिए
सफर दर सफर
उस एक लफ्ज़
प्यार पे लुट जाती है ,प्यार पे लुट जाती है ….
सुशील सरना