प्यार तेरा न आया है (नवगीत)
इस घर की
चौखट पर
अब-तक
प्यार तेरा
न आया है ।
चींटीं आईं ,
चींटे आए ;
छिपकलियों
की गश़्त
भीत पर ।
दीमक लगते,
बिच्छू आते ;
मक्खी
आतीं ,आते
मच्छर ।
बचा-खुचा
जो, रस
जीवन का ;
सब खटमल
ने खाया है ।।
इस घर की
चौखट पर
फिर भी
प्यार तेरा
न आया है ।।
आहें आईं ,
जूड़ी आई ;
चुभा हृदय
नफ़रत का
नश़्तर ।
सावन बीता ,
भादौं आया ;
अश्क़ों का ,
बहता है
निर्झर ।
पत्ते सूखे
शाखाओं पर ,
त्यागी तरु ने
छाया है ।।
इस घर की
चौखट पर
लेकिन
प्यार तेरा
न आया है ।।
शीत निकलती ,
गर्मी आती ;
देह स्वेद
से होती
तर-तर ।
बारिश होती ,
धूप निकलती ;
मेंढक भी
करते हैं
टर – टर ।
कोने-कोने
फैल गई जब
हरियाली
की माया है ।।
इस घर की
चौखट पर
तब – भी
प्यार तेरा
न आया है ।।
—- ईश्वर दयाल गोस्वामी ।