प्यार ठुकरा कर
धूप में छाँव सी रोज राहत भी हो
मुस्कराते हुए दिल की चाहत भी हो
प्यार ठुकरा के मेरा चले जब गये
जो न वापस वो आये तो शामत भी हो
रात तन्हाई में आह बन जाये तू
शान्त मन की हंसी सी शरारत भी हो
फूल जैसे खिलो हमेशा सदा
क्योंकि मेरे इश्क की हरारत भी हो
राह पर जब चलूँ मैं गलत फिर कभी
रोक लोगे मुझे वो नसीहत भी हो
रोज तुम दूर हमसे चले जा रहे
रह न पाऊँ अलग हो वो आदत भी हो