प्यार के दुश्मन को समझाना छोड़ दिया
प्यार के दुश्मन को समझाना छोड़ दिया
हमने यारों कब से ज़माना छोड़ दिया
राही को रस्ता दिखलाना छोड़ दिया
तुमने क्यूँकर दीप जलाना छोड़ दिया
बूढ़े बरगद ने मुस्काना छोड़ दिया
पंछी ने भी आना जाना छोड़ दिया
बादल ने पानी बरसाना छोड़ दिया
दहक़ानों ने आस लगाना छोड़ दिया
रोटी की ख़ातिर शहरों में आया है
बचपन का वो गाँव पुराना छोड़ दिया
जब बोले , दस्तार बिना ही आना है
हमने फिर दस्तूर निभाना छोड़ दिया
जब से तुम परदेस गये हो छोड़ हमें
ख़ुशियों ने फ़ुरक़त में आना छोड़ दिया
तन्हाई में जीना है बस यादों में
और कोई ‘आनन्द’ बहाना छोड़ दिया
~ डॉ आनन्द किशोर