प्यार……… कृष्ण सैनी
ना हो शब्दो से बयाँ ये
ना ही कोई परिभाषा
हर किसी के मन मे है
दिलेस्पर्श की अभिलाषा
काम है इसका
दो रूहो को जोड़ना
आसाँ नही इसे
इक बार मिलाके तोडना
प्यार,इक भाव है
कडी धूप मे छाव है
प्यार,इक तपस्या है
जिसमे सारी खुशिया है
प्यार,इक समर्पण है
जिसमे सब कुछ अर्पण है
ना जाती धर्म का रंग है
केवल प्रिया का संग है
प्यार,भरोसा और लगाव है
अलगाव मे बडा घाव है
ना हो शब्दो से बयाँ ये
ना ही कोई परिभाषा
हर किसी के मन मे है
दिलेस्पर्श की अभिलाषा
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कृष्ण सैनी