प्यार की मांग
और कितना इंतजार करआओगी
तुम कब पास आओगी
चाय भी फीकी सी है
लबों को प्यालो से कब लगाओगी
सुबह में देर से उठता हूं ।
तुम भीगी जुल्फों को कब बरसआओगी ।
हां, अब मैं जाग गया हूं ।
पर मेरे हाथों से दामन कैसे बचाओगी ।
खयाल बुरा नहीं है तुम्हारा
मुझे भी वही नाम
बच्चे का अच्छा लगता है
शर्माती तुम हो, कह के
पर ख्याल तो अच्छा लगता है
मत घबराया करो ,हजारों सवाल होते हैं।
पर हम तेरे हैं, तेरी मांग में जगते सोते हैं
घर आने में कभी देर हो ही जाती है
और तुम्हें क्यों बुरे ख्वाब आने लगते हैं
तुम इश्क में मेरे, मेरी दीवानी मगन लगती हो ।
मेरी अधूरी जिंदगी की, आधी किताब लगती हो।
मेरा फर्ज यही है, कि तुम्हें खुश रखूं ।
और तुम हर वक्त मेरी खुशी की बात करती हो ।
मेरे पास लफ्ज़ होते तो, यह प्यार अमर कर देता ।
सात जन्मों का किस्सा, पूरा कर देता ।
मेरा सौभाग्य है, तुम मेरी अर्धांगिनी हो
मेरे दिल की धड़कन, मेरी सांसों की आखिरी रागिनी हो।
हर्ष मालवीय
बीकॉम कंप्यूटर तृतीय वर्ष
शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय भोपाल