प्यार की परिभाषा
१७)
” प्यार की परिभाषा “
नारी बिन घर सूना-सूना लगता है
नारी से ही मकान घर बनता है
नारी से बच्चों की किलकारी है
नारी प्यारी सी फुलवारी है ।।
नारी से खाने में महक है
नारी से जीने की ललक है
शाम को लौट आने की लालसा है
कोई समझता है मुझे, ये भरोसा है।।
नारी से ही घर में बचत है
समाज में बनी इज़्ज़त है
सबके चेहरे का नूर है नारी
सबके दिल का सुकून है नारी ।।
नारी हर समस्या का समाधान है
नारी से रिश्तों में ख़ास पहचान है
निराशा में डूबे को एक आशा है
नारी तो प्यार की परिभाषा है ।।
नारी से चाहत हैं , तमन्ना है
दिलों पे राज करने की कामना है
नारी साहस है,जीने का भाव जगाती है
बिन नारी दुनियाँ वीरान हो जाती है।।
स्वरचित और मौलिक
उषा गुप्ता , इंदौर