” प्यार की अपनी परिभाषा “
(संस्मरण )
बात क़रीब 42 साल पहले की है मैं और मुझसे डेढ़ साल बड़ी बहन इलाहाबाद के क्रॉस्थवेट गर्ल्स इंटर कॉलेज के हॉस्टल में सबसे बड़ी बहन बी.एच.यू. के हॉस्टल में और मुझसे दो साल छोटा भाई देहरादून के कर्नल ब्राउन स्कूल के हॉस्टल में रह कर अपनी पढ़ाई कर रहे थे , हम बहनें तो त्योहारों पर घर आ जाते लेकिन भाई को साल में दो बार दो – दो महीने की छुट्टी मिलती । भाई को बड़ी राखियों का बड़ा शौक़ था जहाँ तक मुझे याद है मैने उसको पाँच या छ: साल तक ही बाज़ार की राखियाँ बाँधी होंगीं उसके बाद आज तक हाथ ही बनी राखियाँ ही बाँधती हूँ , हॉस्टल में जितनी बड़ी राखी बना सकती उतनी बड़ी राखी बनाती और भाई को भेजती , फिर इंतज़ार होता सर्दियों की छुट्टियों का कि जब वो आयेगा तभी पता चल पायेगा की उसको राखियाँ मिली की नहीं ? पसंद आयीं की नहीं ? हर बार की तरह इस बार भी किसी तरह इंतज़ार ख़त्म हुआ हम भाई से दो दिन पहले घर पहुँचे…मैं भाई को स्टेशन लेने माँ के साथ ज़रूर जाती थी इस बार भी ऐसा ही हुआ ट्रेन आने तक बहुत बेचैनी थी ट्रेन आई और भाई का चेहरा देखा तब चैन आया ।
घर पर इंतज़ार हो रहा था दोनों बहनों ने ख़ूब प्यार किया लेकिन बाबू का प्यार बस सर पर हाथ फेर कर होता था…हमारी राखी मिली ? मैने उतावली हो कर पूछा भाई ने हाँ में जवाब दिया और बोला ” मेरी राखी सबसे बड़ी और सुंदर होती है मैने तो तीन चार दिन तक बाँधी ” ये सुन हम सब हँसने लगे फिर भाई ने अपना ट्रंक खोल कर एक नक़्क़ाशीदार डिब्बा निकाला जो माँ ने उसको चिट्ठियाँ रखने के लिये दिया था उसने जब उसको खोल कर दिखाया तो उसमें चिट्ठियों की जगह हमारी राखियाँ रखी थीं , फिर बताने लगा की बहुत से लड़कों की राखी नही पहुँच पाई तो मैने बोला की तुम अपनी एक राखी किसीको दे देते ये सुनना था की वो झट बोल पड़ा ” नही अपनी बहनों की राखियाँ किसी को नही देते राखी देने से बहनों का प्यार बँट जाता है ” खिलखिला कर हँस दिये सब फिर पूछा की किसने बताया ये ? मेरे किसी दोस्त ने बताया था ये कह कर अपना राखी का डिब्बा उठा कर अपने ट्रंक में रखने चला गया । ग्यारह साल के भाई ने बहनों के प्यार की अपनी ही परिभाषा बना ली थी , कई सालों तक हम उसको ख़ूब चिढ़ाते थे ” अच्छा तो राखी देने से बहनों का प्यार बँट जाता है ? ” लेकिन आश्चर्य की वो कभी भी चिढ़ता नही था एकदम सिरियस हो कर जवाब देता था ” हाँ बँट जाता है ” ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 01/08/2020 )