प्यार का स्वभाव।
सच कहूं,
तुम्हारी तरफ आकर्षित हुआ था,
वस्त्रों के पीछे ,
छुपी तुम्हारी मांसलता देखकर,
अपनी कल्पना की आंखों से देखकर,
यह सोचकर,
की तुम्हारी देह को प्राप्त करना,
कितना सुखकर होगा,
मैं तुम्हारी देह पा सका या नहीं,
यह एक अलग बात है,
लेकिन जब तुम्हारी यादों के साये,
मेरे ऊपर छाए हुए हैं,
उनमें न तो ,
तुम्हारी मादक देह है,
और न ही ,
उसकी विशेष सुगन्ध,
उभरता है तुम्हारा चेहरा,
और उसमें भी ,
खासतौर पर तुम्हारी आंखे,
पूरी दुनियां का सौंदर्य समेटे,
शरीर की मादकता से,
आंखों की भावनत्मकता तक ,
का यह सफर,
कब और कैसे तय किया मैंने,
न जानता हूँ,
न जानना चाहता हूं,
पर पूछना चाहता हूं,
एक सवाल,
क्या यही है वो भाव,
जिसे लोग ,
कहते हैं प्यार का स्वभाव।