” प्यार का कोई प्रकार नहीं “
हेलो किट्टू !
?जैसे मान लीजिए आपका एक छोटा बच्चा / बच्ची है । बच्चे तो सारे ही बहुत सुंदर होता है उनके प्रति सबके हृदय में आकर्षण होता है । उस दौरान हम बच्चों को गोद में उठाते है , गले लगाते हैं , चुम्बन करते हैं तो क्या बच्चों के माता-पिता के प्रति उनका प्रेम बदल जाता है , क्या वो उन्हें घृणा से देखते हैं ❓❓
नहीं ना ❗
प्यार दो ?हृदयों का मिलना है ।
प्रेम तो हमारे अंदर जन्म से ही विद्यामान है , इसका न ही सृजन होता है न ही विनाश । यह जीवन भर एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होता रहता हैं ।
बहुत लोगो के मुंह से सुनकर कभी – कभी मुझे ये वाक्य सुन कर हंसी आती है कि लोग कहते है कि मां का प्यार अलग होता है , बहन का प्यार अलग है , बीबी का प्यार अलग है , लड़की मित्र का प्यार अलग है , लड़का मित्र का प्यार अलग है , पापा का प्यार अलग होता है , शिक्षक का प्यार , बेटे का प्यार , बेटी का प्यार , आलू का प्यार , टमाटर का प्यार , कपड़े का प्यार , जरूरत का प्यार ? पता नहीं कितने भतेरे प्यार है दुनिया में ।।
आखिर ये प्यार है क्या ❓
कास की दुनिया में प्यार ढूंढने से अच्छा एक बार अपने आस पास नज़र घुमाई होती तो ,
प्रेम ग्रंथ ना देखना पड़ता ,
भगवान कृष्ण जी को अवतार ना लेना पड़ता ,
सलीम अनारकली को कोड़े ना खाने पड़ते ,
लैला मजनू न मरते ,
रोमियो और जुलियट न तड़पते ,
मीरा ज़हर का प्याला ना पीती ,
कास ये प्रेम की आपबीती न होती ।
? धन्यवाद ?
✍️ ज्योति ✍️
नई दिल्ली