प्यार का अहसास अब भी उन ख़तों में क़ैद है
प्यार का अहसास अब भी उन ख़तों में क़ैद है
याद भी उनकी हमारी हिचकियों में क़ैद है
ज़िन्दगी कितनी हमारी बंदिशों में क़ैद है
हर परिंदा अपने अपने घौंसलों में क़ैद है
मौत के साये में रहकर नींद भी आती नहीं
करवटों का राज़ सारा सिलवटों में क़ैद है
अब ख़ुशी रहने लगी है डर का पर्दा ओढ़कर
दर्द भी ख़ामोश सा बस सिसकियों में क़ैद है
तम निराशा के घिरे भी हैं अगर तो क्या हुआ
रोशनी भी तो हमारे हौसलों में क़ैद है
खनखनाते रहते हैं यादों के सिक्के उम्र भर
आज तक बचपन हमारा गुल्लकों में क़ैद है
मुतमइन होता नहीं देखा कभी हमने इसे
‘अर्चना’ दिल रहता हरदम ख़्वाहिशों में क़ैद है
21-05-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद