प्यार करने का ऐसा वो गम दे गया।
गज़ल
काफ़िया- अम की बंदिश
रद़ीफ- दे गया
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212……212…….212…..212
प्यार करने का ऐसा वो गम दे गया।
वो गया पर हमें आँख नम दे गया।
गैर होता तो उससे गिला हम करें,
वो था प्यारा सा अपना कसम दे गया।
रात दिन उसके सपनों में रहते हैं हम,
हमको चाहत का ऐसा भरम दे गया।
दर्द जितना भी हो उतना प्यारा लगे,
सोचता हूँ वो क्यों मुझको कम दे गया।
प्यार ‘प्रेमी’ करूंगा उसे उम्र भर,
इश्क में दर्द जो बेरहम दे गया।
……✍️ सत्य कुमार ‘प्रेमी’