प्यार करना न इनसे सिखाओ सुकवि
प्यार के गीत रच-रच के गाओ सुकवि
किंतु आतंक मत भूल जाओ सुकवि!
मित्र सतनाम हैं यार रेहान हैं
दोस्त लैम्बर्ट है शत्रु बुरहान हैं
सींग दैत्यों के अब तो है होते नहीं
सोंचकर प्रीति गंगा बहाओ सुकवि!
दैत्य दुष्कर्म से मित्र पहचान लो
जाति मानव की परखो उसे जान लो
प्रेम इंसान के ही लिए है बना,
दानवों से ये दिल मत लगाओ सुकवि!
पाक है दैत्य अब चीन भी है असुर
जिनके कश्मीर में मिल रहे सुर में सुर
आज बंगाल आसाम भी जल रहा
आंतरिक शत्रु पहचान जाओ सुकवि!
प्रेम राक्षस से जिसने किया रो दिया
प्यार आदिल का देखो मरी है रिया
प्रीति जेहाद में बहनें बेची गईं,
प्यार करना न इनसे सिखाओ सुकवि!
बांसुरी प्रेम की राधिका साथ में
पर सुदर्शन भी है कृष्ण के हाथ में
आज आतंक है कौरवों के सदृश,
श्लोक गीता के जग को सुनाओ सुकवि!
प्रेम के गीत हैं मानवों के लिए
शस्त्र संहार के दानवों के लिए
दूर रखना उन्हें इस हृदय से सदा
कल्पना में न निज को लुभाओ सुकवि!
सप्रेम,
–इंजी0 अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’