प्यार, इश्क, मुहब्बत…
सुनो,
तुम से कुछ कहना हैं,
इश्क, मुहब्बत, प्यार
बस एक तरफा ही जान पाये हो ना ..
हाँ जरूँर ही कहोगे तुम,
बहुत खुबसुरत बलाओं से जो मिले थे तुम,
रूप रंग के जाल में ही ठहरें रहें तुम,
हाथों को छुआ होगा, नजरें भर के भी देखा होगा,
फिर भी यकीन से कह सकोगे,
क्या वहीं मुहब्बत थी तुम्हारीं…….
क्या तुम कभी किसी मुहब्बत की परछाई को छूँ सके हो..
क्या कभी इश्क के झुल्फों की छाँव में
अपनी दिन भर की थकान मिटा सके हो ..
क्या किसी प्यार की आँखों ने
तुम्हारी आँखों में छुपे आँसूओं के दर्द को चुमा हैं..
क्या कभी किसी मुहब्बत ने तुम्हारी लड़खड़ाती आवाज में,
छुपे गम को अपनी आवाज के सहारें सँभाल लिया हो..
हर किसी के हाथों को थाम तो सकें हो तुम,
लेकिन किसी के छोटी उँगली से खुदकी छोटी उँगली को फँसाकर
पुरी दुनिया को पाया हैं..
नहीं ना…
तो तुम कैसे किसी मुहब्बत को जान सकोगे..
बिल्कुल ही नहीं ना..
जो फरेब तुम्हें मिला वहीं सीखा हैं तुमने,
वहीं लौटा रहें हो ..
दिल के सुकुन की तलाश में भटककर
खुद को ही मिटाते चले हो..
सुनो,
रूँक सको तो रूँक लो दो पल के लिए,
खुद को सिमटकर देख लो एक बार फिर,
मंजिल तो आस पास ही होगी
फिर भी ,
नजरों को चुराने की ये जो तुम्हारीं आदत हैं ना,
हर चीज से भागकर खुदको तनहाई में
ढकेल लेने की ये जो जिद्द हैं ना..
कहीं तुम्हें उम्रभर का राह से भटका मुसाफिर ना बनाकर रख दें….
#ks