प्यार आपस में दिलों में भी अगर बसता है
ग़ज़ल
प्यार आपस में दिलों में भी अगर बसता है
तब कहीं जा के मकानों में ये घर बसता है
मेरी आँखों में तो लगता है तुम्हें वीराना
ज़ेह्न में मेरे ख़यालों का नगर बसता है
ख़ुद ब ख़ुद पाँव थकन रौद के बढ़ जाते हैं
हौसलों में जो मेरे ज़ौक़-ए-सफ़र बसता है
रहता पुरनूर मेरे दिल का ये गोशा-गोशा
दिल में मेरे जो मेरा रश्क़-ए-क़मर बसता है
हाथ फैलाते नहीं है वो किसी के आगे
जिनके हाथों में कमाने का हुनर बसता है
दीदा-वर क्यों मुझे नाबीना समझते हैं ‘अनीस’
मेरी आँखों में मेरा नूर-ए-नज़र बसता है
– अनीस शाह ‘अनीस ‘