प्यारी संजलि !
प्यारी संजलि
तुम मर गई,
तुम मुक्त हो गई,
हम लोग भी मर चुके हैं,
आधे – आधे पर मुक्त नहीं हुए
तुम्हें पहले जलाया गया,फिर मारा गया
हम लोगों का मरना और जलना
साथ -साथ चल रहा है !
तुम अकेली नहीं थी,
जिसे जलाया गया,
ये तो सदियों कि परम्परा है
मैं उस पहली औरत को नहीं जानती
जिसे पहले जलाया गया, फिर मारा गया
मैं तुम्हें जानती हूँ,
और इस कलिकाल में मारे गए और भी लोगों को!
संजलि मैं जानती हूँ,
मौत शाश्वत सत्य है ,
जानती हूँ कि,
जीवन के साथ ही मृत्यु का भी जन्म होता है।
हम जीते ही इसी लिए कि मर सके,
एक दिन
हम सभी जानते हैं इस सच को।
फिर भी कोई मर जाय,
अपनी ही मौत, जिस के लिए वो जीता है,
तो दुःख होता ही है।
और अगर मौत के किसी भी कारण, या दुर्घटना
के हम जिम्मेदार हम हों, तो
जीवन अभिशप्त हो जाती है
अपने आप को लोग,
अपने जीवन काल में माफ़ नहीं कर पाते।
पर जिन लोगों ने तुम्हें जलाया,
जला के फिर मारा,
और जो हमें पहले ही मार चुके हैं,
बस जलाना बांकी है।
वो कुछ तो अलग मिट्टी के बने हैं
उनके सीने में दिल नहीं धडकता
वहाँ बड़े-बड़े पत्थर पड़े हैं ,
पत्थर के भगवान, पत्थर की गाय
पत्थर के धर्म और पत्थर के ही धर्म ग्रंथ
जिस पे हमारी तुम्हारी और
पूरी मानवता की बलि दी जाएगी,
ताकि पत्थर के धर्म के सहारे
धर्म, रंग, नस्ल के भेद भाव में उलझा कर,
‘वो’ हिटलर हो सके, ‘तानाशाह’
नहीं तो वो भी बोलते तुम्हारे लिए,
तुम सब के लिए जिसे अकारण मारा गया,
पर वो चुप हैं…
बोलेंगे भी तो हादसा या साज़िश बता देंगे
वो त्रिशूल हाँथ में लिए निकले हैं,
पत्थर के भगवान और पत्थर की गाय
के हत्यारों को ढूंढने, अपने देश से बिदेश तक
पर मेरी बच्ची तुम चिंता मत करना,
हम राख में चिंगारी ढूंढ रहे हैं,
अपने और तुम्हारे अस्तित्व कि वो पहली लौ
जिस से मशाल जलाया जा सके
अपनी मुर्दा चेतना को जगाने के लिए
और अपनी आने वाली नस्ल के लिए ,
जिंदगी जीने लायक बनायी जा सके!,
तुम्हारे और मेरे आँखों के सपनें के लिए !
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21 – 12 – 2018
मुग्धा सिद्धार्थ