प्यारी माँ
सोती है देर से, तुझसे पहले जग जाती
जग कर तेरे लिए भोजन है पकाती
तुझको नहला धुला कर स्कूल भी पहूँचाती
सारे काम करने के बाद घर के कामो में लग जाती
जो इन दुखड़ो मे अडिग रहे वही माँ कहलाती
वही बेटा जब बड़ा होकर अपने पैरों पर खड़ा होता
देख कर अच्छी बहू कर देते उसकी शादी
बहू भी बेटे संग घर छोड़कर चली जाती
फिर भी अपनी ख्याल का तरस उसे न आती
जो इन दुखड़ो मे अडिग रहे वही माँ कहलाती
अपनी ख्याल का नही, बल्कि बेटे की तरस आती
भिजवाकर अपनी संदेशा किसी से बेटे तक पहूँचाती
जब होते है उसके भी बच्चे, सुनकर खुश हो जाती
उन बच्चों के लिए खिलौने और कपड़े भिजवाती
जो इन दुखड़ो मे अडिग रहे वही माँ कहलाती
कब घर आएगा मेरा बेटा, उसे यही ख्याल सताती
काँपती हुई हाथों से उनके लिए मुरब्बा आचार बनाती
नही आते है वो जब तक साँसे रुक ना जाती
मरते समय तक वो बस बेटे की रट लगाती
जो इन दुखड़ो मे अडिग रहे वही माँ कहलाती।
आदर्श कुमार