प्यारा भारत देश मेरा
युगों-युगों से जगत् गुरु है भारत का सुन्दर परिवेश।
आदिकाल से विजय दुंदुभि बजा रहा है भारत देश।।
गणित और विज्ञान का उद्भव भारत है यह स्मरण कराएं।
प्यारे भारत देश के वैभव का परचम फिर से लहराएं।।
देश असंख्य हैं जग में किन्तु भारत देश सबका सम्राट।
उत्तर में उत्तुंग हिमालय है दक्षिण में है जलधि विराट।।
अद्भुत अप्रतिम अतुलनीय इस भव्य
देश की गाथा गाएं।
प्यारे भारत देश के वैभव का परचम फिर से लहराएं।।
है वह पुनीत भूमि जहाँ राम कृष्ण विचरे मानव वेष।
वाल्मीकि वशिष्ठ अगस्त्य ऋर्षियों का चहुँओर विस्तीर्ण त्वेष।।
कोटि नमन् भारत माँ के शुचि आँचल रतन अमोल जड़ाएं।
प्यारे भारत देश के वैभव का परचम फिर से लहराएं।।
वेदों की है श्लोक ऋचाएं अमृत वर्षा करें उपचार ।
गंगा यमुना सरिताएं माता सम दें शुचि सलिल की धार।।
इस अमूल्य निधि के सम्मुख व्यर्थ हैं सकल सम्पदाएं।
प्यारे भारत देश के वैभव का परचम फिर से लहराएं।।
अविच्छिन्न था देश हमारा सकल विश्व में था विख्यात।
पराक्रमी शुचि भू पर स्वयं प्रभु करते थे वास दिन-रात।।
आओ हम उस वीर धरा का विश्व से परिचय आज कराएं।
प्यारे भारत देश के वैभव का परचम फिर से लहराएं।।
सृष्टि ने कण-कण में उद्वेलित किया प्रकृति भंडारण।
कुदरत से यूँ जुड़ा है मानव जन्म हो या चाहे हो मरण।।
भारत की अक्षुण्ण नैसर्गिक सम्पदा
से जग को अवगत करवाएं।
प्यारे भारत देश के वैभव का परचम फिर से लहराएं।।
शौर्य था जिस देश का दीपक
विजय थी सदा वर्तिका जिसकी।
कोई तिमिर न रोक सका दमकती हुई हस्ती को उसकी।।
दैदीप्यमान इस नव प्रकाश से सृष्टि अखिल हम जगमगाएं।
प्यारे भारत देश के वैभव का परचम फिर से लहराएं।।
भारत के पराक्रम वीरों की सुनते थे शौर्य मयी गाथा।
वे सुभट वीर रण आंगन में भारत माँ को प्रति पल टेके थे माथा।।
थर्राता था काल भी जिनसे डरती थीं जिनसे बलाएं।
प्यारे भारत देश के वैभव का परचम फिर से लहराएं।।
यदि हम रहे कृतसंकल्प तो वह दिन दूर नहीं हैं भैया।
शीघ्र ही भारत देश बनेगा पुनःएक दिन “सोन चिरैया”।।
निज गौरव के गर्व से हम मस्तक
को नभ तक ऊंचा उठाएं।
प्यारे भारत देश के वैभव का परचम फिर से लहराएं।।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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