प्यारा नहीं कोई
अब आदमी को आदमी प्यारा नहीं कोई
ताकीद मिल रही है तुम्हारा नहीं कोई
मुश्किल में हो अगर तो निकलना पड़ेगा खुद
अपनों की भीड़ फिर भी सहारा नहीं कोई
हमने ही बज़्म है ये सजायी हुई मगर
इस बज़्म में हमारी हमारा नहीं कोई
इक वादा कर दिया था निभाना है उम्र भर
हम चाहते रहेंगे कि चारा नहीं कोई
अब चल पड़े हैं शहर से अपने ही गाँव को
ऐसी वबा चली कि गुजारा नहीं कोई
अब आस टूटने लगी हालात हैं बुरे
उम्मीद हो ख़ुदा की इशारा नहीं कोई
बेशक हैं आज साथ में सारे खुशी खुशी
‘सागर’अगर है सूखा किनारा नहीं कोई
#सागर
ताकीद-बार-बार कहना
बज़्म-महफिल