पोशीदा बातों को
पोशीदा बातों को सुर्खियां बनाते हैं
लोग कैसी कैसी ये कहानियां बनाते हैं
जिनमें मेरे ख़्वाबों का नूर जगमगाता है
वो मेरे आँसू इक कहकशां बनाते हैं
फ़ासला नहीं रक्खा जब बनाने वाले ने
क्यों ये दूरियां फिर हम दरमियां बनाते हैं
फूल उनकी बातों से किस तरह झरें बोलो
जो सहन में काँटों से गुलसितां बनाते है
जब नदीश जलाती है धूप इस ज़माने की
हम तुम्हारी यादों से सायबां बनाते हैं
© लोकेश नदीश