पैसो की इज्जत
ट्यूशन
संगीता घर में सबसे छोटी बहू बन कर आयी है,
रामलाल के तीन लड़के हैं जो नौकरी
करते हैं । दो की शादी हो गयी है बहुएं बड़े घरों
से हैं , उन्हें किटी पार्टी, बर्थडे पार्टियों से फुर्सत ही नहीँ मिलती । दोनों के दो दो बच्चे हैं जो स्कूल जाते हैं , उनका होमवर्क कराने का किसी के पास समय नहीं होता । वह परेशान होते रहते हैं । आखिर बच्चों को ट्यूशन लगा दी । एक एक बच्चे के दो दो हजार लग रहे थे । लड़के भी अपनी अपनी पत्नियों के खर्चों से और स्कूल फीस , टयूशन परेशान थे , लेकिन कुछ कर नहीं पा रहे थे ।
तीसरे बेटे की शादी के समय रामलाल ने पैसे की जगह संस्कारों को महत्व दिया और संगीता को घर ले आये । संगीता पढ़ी लिखी समझदार लड़की है उसके घर आते ही दोनों जेठानियों ने अपने रंग में रंगने की कोशिश की , लेकिन संगीता ने अपनी जिन्दगी अपने हिसाब से जीने का तय किया ।
संगीता के व्यवहार से बच्चे, बड़े सब उसको चाहने लगे थे । जब संगीता को मालूम हुआ कि बच्चे पढ़ाई और होमवर्क के लिए परेशान होते हैं, और घर से आठ हजार रूपये फीस भी जाते हैं , तब उसने बच्चों को ट्यूशन नहीं भेजने का निश्चय किया ।
अब जब दोनों जेठानियाँ दोपहर को
बाजार , किटी पार्टी में जाती तब संगीता चारों बच्चों को पढ़ाने बैठ जाती । इस तरह बच्चों का ट्यूशन जाना बंद हो गया , इससे पैसे भी बचे और बच्चों का जाने आने का समय भी बच गया ।
रामलाल भी संगीता की इस पहल से बहुत खुश हुए और संगीता भी मोहल्ले के दूसरे बच्चों को भी पढ़ाने लगी ।
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल