*पैसे हों तो आओ (बाल कविता)*
पैसे हों तो आओ (बाल कविता)
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बच्चों ने देखीं गुलाब की
कलियाँ प्यारी-प्यारी,
सजी दुकानों पर थीं
पीली – लाल – गुलाबी सारी
बच्चे बोले “कली बहुत अच्छी है
एक सुँघाओ”
तब दुकानवाला यह बोला
“पैसे हों तो आओ”
बच्चे बोले” हमें पता क्या
पैसे किसको कहते ?
लेन-देन की दुनिया में
हम बच्चे कब हैं रहते?
हमने माँगा फूल
हमारे मन को था यह भाया,
देना हो तो हमें मुफ्त दो
पास न अपने माया ।।”
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रचयिता:रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर(उ.प्र) 9997615451