Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Jun 2024 · 3 min read

पैसे की क़ीमत.

एक क़स्बे में दो घनिष्ठ मित्र रहते थे,बात आज़ादी के तुरंत बाद की हैं,एक धनी था,एक इतना धनी नहीं था,रोज़ाना कमाना और गुजर बसर करना,पर दोस्ती की लोग मिसाल दिया करते थे.दोनों दोस्त अपने-अपने माँ बाप की इकलौती संतान थे.एक दिन दोनों दोस्त साथ-साथ अपने-अपने घरों को जा रहे थे,विदा लेते समय निर्धन दोस्त ने अपने दोस्त से १० रुपये उधार माँगे,धनी दोस्त ने देर नहीं की देने में और बोला कुछ और चाहिए तो बता,नहीं-नहीं मुझे तो बस १० रुपये ही चाहिए.अगले दिन धनी दोस्त अपने दोस्त का इंतज़ार करता रहा, सुबह से दोपहर हो गईं,आपस में नहीं मिले चिंता होने लगी,बहुत इंतज़ार करने के बाद धनी दोस्त अपने दोस्त को देखने उसके घर की ओर चल दिया,घर पर ताला लगा था,पड़ोसियों से पूछा सब ने मना कर दिया हमें कुछ नहीं बता कर गया हैं,हाँ सुबह क़रीब ४ बजे कुछ हलचल तो थी.धनी दोस्त सोच में पड़ गया आख़िर बिना बताये कहाँ चला गया,हर रिश्तेदार के यहाँ पता लगाया पर कुछ पता न चला, समय बीतता रहा,धनी दोस्त कुछ समय के लिए तो परेशान रहा,कुछ समय बाद शादी हो गई बच्चे हो गये,अपने काम में व्यस्त रहने लगा.जब भी समय मिलता रिश्तेदारों से पूछताछ करता रहता था पर पता न चला.क़रीब २५ साल बाद धनी सेठ को अपने व्यापार के लिए लखनऊ जाना हुआ, काम के कारण सेठ को क़रीब एक सप्ताह रुकना था,सेठ सोचने लगे क्यों न शहर भी घूम लिया जाये,एक दिन दोपहरी का खाना खाने एक होटल में रुके,ग़रीब दोस्त अपने धनी दोस्त को पहचान गया,जैसे ही सेठ खाना खाने के बाद पैसे देने के लिए काउंटर पर आया,दोस्त ने पैसे लेने से मना कर दिया,धनी दोस्त के पैर पकड़ कर ज़ोर- ज़ोर से रोने लगा और कहने लगा मैं तुझे वो १० रुपये नहीं दूँगा,जैसे ही धनी दोस्त ने ये सुना तुरंत गले से लगा लिया, दोनों दोस्त गले लग कर आपस में बहुत रोये,धनी दोस्त रोते हुए बोला पगले मैं तेरे से १० रुपये लेने नहीं आया हूँ.मैं तेरे से बहुत नाराज़ हूँ बिना बतायें यहाँ आ गया, मुझे पता हैं पर मैं क्या करता…. इसके लिए मुझे माफ़ कर दें पर ईश्वर ने हमें फिर से आज मिलवा दिया,आपस में बहुत बातें हुई अपने दोस्त को घर ले गया और अपने बच्चों से मिलवाया,अपने बेटे से बोला जा अपने ताऊ का सामान उस होटल से ले आ जिसमें ठहरें हुए हैं,रात का खाना खाने के बाद,सब बैठ कर बातें कर रहे थे, ग़रीब दोस्त ने अपने बचपन के दोस्त के बारे में बताया और मैंने १० रुपये उधार लेकर बिना बतायें अपने माँ बाप को लेकर मैं यहाँ आ गया,उन १० रुपयों से मैंने चाट की रेहड़ी लगाई,मेहनत की, आज एक होटल हैं और ये एक मकान,मुझे पता हैं उन १० रुपयों की क़ीमत आज मैं जो भी हूँ उन १० रुपयों की वजह से हूँ,मुझे पता हैं “पैसे की क़ीमत”, और हाँ वो १० रुपये मैं वापस नहीं करूँगा.परिवार में आपस में आना जाना शुरू हो गया,सबको पता चल गया दो बिछड़े दोस्त दुबारा से मिल गये हैं. लखनऊ वाला दोस्त बोला जो हमारा पुश्तैनी मकान हैं वो मैं तेरे नाम करता हूँ,एक दिन आकर सब से मिल भी लूँगा और मकान के कागज तेरे को दें दूँगा.

Language: Hindi
2 Likes · 19 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
तू है तो फिर क्या कमी है
तू है तो फिर क्या कमी है
Surinder blackpen
जग-मग करते चाँद सितारे ।
जग-मग करते चाँद सितारे ।
Vedha Singh
" मँगलमय नव-वर्ष-2024 "
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
सजल...छंद शैलजा
सजल...छंद शैलजा
डॉ.सीमा अग्रवाल
वादा  प्रेम   का  करके ,  निभाते  रहे   हम।
वादा प्रेम का करके , निभाते रहे हम।
Anil chobisa
2585.पूर्णिका
2585.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
नवजात बहू (लघुकथा)
नवजात बहू (लघुकथा)
गुमनाम 'बाबा'
तलाशता हूँ उस
तलाशता हूँ उस "प्रणय यात्रा" के निशाँ
Atul "Krishn"
रिश्ता दिल से होना चाहिए,
रिश्ता दिल से होना चाहिए,
Ranjeet kumar patre
पुष्पों की यदि चाह हृदय में, कण्टक बोना उचित नहीं है।
पुष्पों की यदि चाह हृदय में, कण्टक बोना उचित नहीं है।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
■ वंदन-अभिनंदन
■ वंदन-अभिनंदन
*प्रणय प्रभात*
प्राण प्रतीस्था..........
प्राण प्रतीस्था..........
Rituraj shivem verma
तेरे सहारे ही जीवन बिता लुंगा
तेरे सहारे ही जीवन बिता लुंगा
Keshav kishor Kumar
बड़ा मन करऽता।
बड़ा मन करऽता।
जय लगन कुमार हैप्पी
चंचल मन
चंचल मन
Dinesh Kumar Gangwar
मेरी जिंदगी सजा दे
मेरी जिंदगी सजा दे
Basant Bhagawan Roy
वो अपनी जिंदगी में गुनहगार समझती है मुझे ।
वो अपनी जिंदगी में गुनहगार समझती है मुझे ।
शिव प्रताप लोधी
जीवन
जीवन
लक्ष्मी सिंह
उम्र भर प्रीति में मैं उलझता गया,
उम्र भर प्रीति में मैं उलझता गया,
Arvind trivedi
*देश के  नेता खूठ  बोलते  फिर क्यों अपने लगते हैँ*
*देश के नेता खूठ बोलते फिर क्यों अपने लगते हैँ*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
थैला (लघु कथा)
थैला (लघु कथा)
Ravi Prakash
"आज की रात "
Pushpraj Anant
कई बार हम ऐसे रिश्ते में जुड़ जाते है की,
कई बार हम ऐसे रिश्ते में जुड़ जाते है की,
पूर्वार्थ
"" *रिश्ते* ""
सुनीलानंद महंत
झुक कर दोगे मान तो,
झुक कर दोगे मान तो,
sushil sarna
*अज्ञानी की मन गण्ड़त*
*अज्ञानी की मन गण्ड़त*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
हालातों का असर
हालातों का असर
Shyam Sundar Subramanian
जमाने को खुद पे
जमाने को खुद पे
A🇨🇭maanush
खुशियों की आँसू वाली सौगात
खुशियों की आँसू वाली सौगात
DR ARUN KUMAR SHASTRI
आप क्या
आप क्या
Dr fauzia Naseem shad
Loading...