पैसे का विस्तार
पैसे की एक कहानी है,
जरुरत की एक निशानी है,
गरीब-आमिर पैसे से बनते,
पैसे का उपयोग ही सब करते,
पैसे से ही बनते है घर,
भोजन भी खरीदते है,
सुंदर कपड़े पैसे से मिलते,
पैसे से दवा है लाते,
शिक्षा बिन पैसों के न मिलती,
बड़े-बड़े होते कारोबार,
पैसे मिलते करोगे रोजगार,
पैसे की ताकत बढ़ गई,
प्रांतो को तरक्की मिल गई,
पैसों की है ढेरो-ढ़ेर प्रशंसा,
प्रतिस्पर्धा आपस में आयी,
पैसे के लिए होती लड़ाई,
गिनते है एक दूजे की कमाई,
उथल-पुथल जन जीवन में,
पैसे के हाथ में फंसा है मानव ,
पैसों के लिए क्या-क्या न किया,
फिर भी बिन पैसों के पेट न भरा,
इसमें तनिक भी संशय नहीं,
पैसे ने लालच की जगह बनाई,
पैसा करता है मानव पर राज,
मानवता का अस्तित्व खतरे में आज ।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर ।