पैसा
पैसों की खनक से
जुर्म दब जाता है ,
पैसों के आगे
रिश्ता खो जाता है ,
बिन पैसा गुण भी ढक जाता है
पैसा हो तो अवगुण भी तर जाता है ,
पैसा जोश भी भर देता है
पैसा मदहोश भी कर देता है ,
पैसा लंगड़ों को चलवाता है
पैसा गूंगो को बुलवाता है ,
पैसा बल भी हर लेता है
पैसा बल भी भर देता है ,
पैसा रिश्ते घटाता भी है
पैसा रिश्ते बढ़ाता भी है ,
पैसा मूढ़ों में भी ढूंढ लेता है गुण
पैसा विद्वानों में भी भर देता है अवगुण ,
पैसा नाचता है नचाता भी है
पैसा गाता है गवाता भी है ,
बिना ज़ुबान के भी
पैसा अजब बोलता है
पैसा गजब बोलता है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 30/07/11 )