पैसा यह पैसा
पैसे में है भई ! बड़ी जान
गरीबो केलिए यह मज़बूरी ,
और अमीरों के लिए शान।
पूछा मुझसे किसी ने एक दिन,
ऐ दोस्त ! हमें यह बतलाओ ,
होता है यह क्यों गोल ? या फिर ,
कागज़ सा हल्का हमें समझाओ ”
हमने कहा ”भईआ ! यह तो माया है ,
गोल हो या कागज़ कि बनी यह
एक चंचल छाया है।
गोल है तभी तो हो गतिशील ,
कागज़ के हरे-भरे नोटों के संग ,
रहे कभी हिलमिल।
दोनों के दोनों में है कुछ खास बात।
इसकी झोली से उसकी झोली में ,
उसकी झोली से इसकी झोली में ,
करती रहे सदा मुफ्त में यातायात ।
नहीं है इस माया का कोई ठौर -ठिकाना।
एक तो मंज़िल नहीं इसकी जहाँ मिले सौभाग्य ,
माँ लक्ष्मी के संकेत मिले जहाँ ,
इसने तो वहीँ है डेरा जमाना।
यह है एक पहेली कोई न समझ सका जिसे ,
न ही इसका कोई राज़ किसी ने है जाना।
मिलन तो कभी छप्पर -फाड़ कर ,
या फिर दिवाला निकल जाना ।
इस माया कि वजह से अमीरी और गरीबी के बीच ,
बनाई तकदीर ने गहरी खाई है ।
ना मिल जाये यह ईमानदारी से ,
इसकी तबियत में बईमानी है ।
अमीरों के इशारों पर ये नाचे,
और गरीबो को अपने इशारों पर नचाए।
यह पैसा है भई पैसा !
ताकत के ज़ोर से खींचा चला आए ।
बिना अति सौभाग्य के ,
इसे पाना संभव नहीं ।
गरीब तो क्या मध्यम वर्ग के ,
भी यह वश में नहीं।
सारी दुनिया है जिसकी दीवानी ,
यह वो बला है पैसा ये पैसा !