पैसा और रिश्ता
मेरा रूप ,रंग ,लिबाज़ देखकर तुम गंवार कहते हो।
अरे तुम तो केवल पैसे को ,परवर दिगार कहते हो।
चंद पैसों के खातिर तुमने गँवा दिए हैं कितने रिश्ते,
फिर भी अपने आप को बहुत समझदार कहते हो।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
मेरा रूप ,रंग ,लिबाज़ देखकर तुम गंवार कहते हो।
अरे तुम तो केवल पैसे को ,परवर दिगार कहते हो।
चंद पैसों के खातिर तुमने गँवा दिए हैं कितने रिश्ते,
फिर भी अपने आप को बहुत समझदार कहते हो।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी