पैगाम भेजा
मोहब्बत पर लाज का पहरा बिठा आँखों से पैगाम भेजा,
हाल ऐ दिल लिख अपना पहला खत तुम्हारे नाम भेजा।
सोच कर मदहोशी मोहब्बत की कहीं कम ना हो जाये,
मोहब्बत की ओस में भिगो गुलाब सुबह ओ शाम भेजा।
भूल कर ज़माने को इश्क नशे में झूमते रहो तुम ताउम्र,
इसीलिए लबों से छू कर मैंने मोहब्बत का ये जाम भेजा।
खुदा से मेरी हर एक साँस पर लिखवाया है नाम तुम्हारा,
छपवा कर इजहार ऐ मोहब्बत का इश्तहार सरेआम भेजा।
सामने आते ही लब खामोश और आँखें झुक जाती हैं,
इसीलिए सुलक्षणा के हाथों मैंने दिल का सलाम भेजा।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत