पेशा तो बिलकुल भी नहीं है
तेरी वाह की भूख नहीं
शायरी शौक है बस
कोई पेशा तो बिलकुल भी नहीं है
दर्द इश्क आंखें नम भी हैं
पर कोई हुस्न को तरसी
हो , ऐसा तो बिलकुल भी नहीं है
घर परिवार जिम्मेदारियों
से बंधी जज्बातों की सांकल
बड़ी मजबूत है ! बहिन
तुम चाहे इसे कुछ भी समझो
पर तुम यूंही तोड़ दो ये
कोई रेशा तो बिलकुल भी नहीं हैं