पेपर लीक का सामान्य हो जाना
लगन और कठिन परिश्रम से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के बाद छात्र जब परीक्षा देने जाते हैं तो उन्हें स्वयं पर भरोसा होता है कि वे इस बार सफल हो जाएंगे। परीक्षा खत्म होने के बाद उनके चेहरे की रौनक और अधिक बढ़ जाती है, पर जैसे ही वे अपने- अपने घर जाते हैं उन्हें गहरा धक्का लगता है, चेहरे की चमक धूमिल हो जाती है, उनके भविष्य पर अंधकार के बादल छाने लगते हैं क्योंकि खबर आती है कि परीक्षा रद्द हो चुकी है। जिस परीक्षा की तैयारी के लिए विद्यार्थी खून पसीना एक कर देते हैं, परिश्रम में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं उसी परीक्षा को कुछ लोग आपराधिक तरीके से, पैसे और पहुँच के बल पर पास करना चाहते हैं। उन्हें किसी की लगन और मेहनत से कुछ लेना-देना नहीं होता है, वे बस सफल होना चाहते हैं और परीक्षा एजेंसियों की लापरवाही के चलते वे इस अन्यायपूर्ण कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम भी दे पाते हैं। पूरे देश में पैसों के बल पर परीक्षा पास करने की लंबी परंपरा बन चुकी है। स्कूल- कॉलेज की सामान्य परीक्षा से लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं तक सब में धाँधली की खबरें आम हो चुकी हैं। मध्यप्रदेश में व्यवसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) घोटाला, 2013 (जिसने संदिग्धों की क्रमवार तरीके से हत्या के चलते अपनी एक अलग पहचान बनाई) से लेकर अब तक हिंदी पट्टी के राज्यों की लगभग सभी प्रतियोगी परीक्षाएँ बिना धाँधली के सम्पन्न नहीं हुईं। उत्तर प्रदेश के पुलिस भर्ती परीक्षा और यूपी पीसीएस द्वारा आयोजित समीक्षा अधिकारी/ सहायक समीक्षा अधिकारी की प्रारंभिक परीक्षा, 2023 में धाँधली और फिर उन परीक्षाओं को रद्द किया जाना हो या 67वीं बीपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा रद्द किया जाना हो या 11वीं झारखंड पीसीएस परीक्षा में पेपर लीक का मामला हो कोई भी प्रतियोगिता परीक्षा बिना किसी धाँधली के सम्पन्न ही नहीं होती है। राज्य की परीक्षाओं की बात हो या राष्ट्रीय स्तर की सब में कुछ न कुछ गड़बड़ियाँ रहती ही हैं। जिन परीक्षाओं की गड़बड़ियों पर लोगों की नज़र पड़ जाती है उन्हें रद्द कर दिया जाता है और जिन पर नज़र नहीं पड़ती है वह धाँधली मुक्त गिनी जाती है।
तत्कालीन मामला NTA द्वारा आयोजित NEET और NET की परीक्षा में धांधली और फिर नेट की परीक्षा के रद्द होने का है। वैसे छात्र जो jrf के लिए अंतिम बार प्रयास कर रहे थे उनकी लगन और मेहनत की भरपाई कैसे हो पाएगी? क्या परीक्षाओं के रद्द हो जाने के बाद तैयारी का प्रवाह नहीं टूटता है? ऐसे छात्रों के नुकसान का हिसाब कौन करेगा? नीट का अलग ही खेल है। वहाँ 1500 से अधिक चहेते छात्रों को सौ से अधिक प्रोत्साहन अंक देकर सफल घोषित कर दिया गया है।यहाँ तो सीधा- सीधा परीक्षा एजेंसी कटघरे में है,पर नुकसान अंततः छात्रों को ही उठाना है, क्योंकि ताकतवर कभी दोषी नहीं हो सकता और सरकार तो बिल्कुल भी नहीं। जिन छात्रों को प्रोत्साहन अंक दिया गया केवल उन्हीं की दुबारा परीक्षा ली गई, बाकी छात्रों की नहीं, बल्कि धाँधली पूरे जोरशोर से हुई और देश भर में हुई। वास्तविकता यह है कि परीक्षाओं में धाँधली का कोई एक स्तर नहीं होता है। कम्प्यूटर पर ली जाने वाली परीक्षाओं को भी बड़ी सरलता से हैक कर धाँधली की जा सकती है तो पेन- पेपर से ली जाने वाली परीक्षा का पेपर एक दिन पहले ही छात्रों के हाथ में आ जाता है। नीट परीक्षा के कई ऐसे परीक्षा केंद्र थे जो पूरी तरह संदेह के घेरे में थे, संभवतः उन केंद्रों पर पैरवी वाले छात्रों को ही बैठाया गया था और अन्य पैरवी वाले छात्र जो इन केन्द्रों पर नहीं थे उन तक पहले ही प्रश्नपत्र पहुँचा दिया गया। इससे भी बात नहीं बनी तो उन्हें प्रोत्साहन अंक दिया गया, किन्तु क्या केवल प्रोत्साहन अंक पाने वाले छात्रों की दोबारा परीक्षा ले लेने भर से परीक्षा को साफ- सुथरा मान लिया जाना चाहिए? बिल्कुल नहीं। पुर्णिया से नवनिर्वाचित सांसद पप्पू यादव अपनी शपथ के दौरान ‘RE-NEET’ लिखा टीशर्ट पहने हुए थे और उन्होंने री- नीट का नारा भी लगाया। यह केवल उनकी आवाज नहीं है बल्कि तमाम उन लोगों की आवाज है जो कदाचार मुक्त परीक्षा चाहते हैं।
हर पेपर लीक के बाद कुछ परीक्षा माफियाओं को सज़ा तो हो जाती है पर जो सबसे बड़ा अपराधी होता है वह बचा रह जाता है। उसके गिरेबान तक पुलिस का हाथ नहीं पहुँच पाता, क्योंकि उसे सरकार का संरक्षण प्राप्त होता है।केन्द्र की सरकार हो या फिर राज्य की सरकारें हों अगर वे धाँधली रोकने की नीयत बना लें तो किसी की हिम्मत नहीं होगी कि पेपर लीक करा दे, पर सरकार भी चाहती है कि हर प्रतियोगी परीक्षा में धाँधली हो, पेपर लीक हो और युवा पेपर लीक में उलझे रहे। किसी भी बहाली के नोटिफिकेशन से लेकर नियुक्ति पाने तक डेढ़ से दो वर्ष पर्याप्त हैं किन्तु आज हालत ऐसी है कि नई बहाली की बात हो और आसपास चुनाव न हो ऐसा देख पाना दुर्लभ है,जबकि चुनाव सामान्यतः पाँच वर्ष के अंतराल पर होता है।
अभी पेपर लीक पर कानून बनाने की बात सामने आ रही है। केवल कानून बना देने से अगर परीक्षाओं में धांधली रुक जाती तो कब की रुक गई होती, पर वास्तव में ऐसा है नहीं। धाँधली करने वाले लोग जबतक सरकार में रहेंगे या सरकार उनका बचाव करेगी तबतक यह खेल चलता रहेगा और छात्र आँसू बहाते रहेंगे।
लगातार हो रहे पेपर लीक को देखते हुए हम चाहते हैं कि जिस प्रकार किसानों को प्राकृतिक कारणों से उसकी फसल की क्षति होने पर उन्हें मुआवजा दिया जाता है, छात्रों को भी परीक्षा रद्द होने पर मुआवजा मिले और प्रत्येक परीक्षा के लिए परीक्षा एजेंसी और शिक्षा विभाग नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए यह कुबूल करे कि हमसे भूल हुई है, ताकि परीक्षार्थियों का विश्वास कायम रह सके; क्योंकि जबतक वे विद्यार्थियों के सामने खेद प्रकट नहीं करेंगे तबतक उन्हें एहसास ही नहीं होगा कि कदाचार मुक्त परीक्षा करवाने की उनकी भी कुछ जिम्मेदारी है और वे अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते हैं।
आनंद प्रवीण, पटना