” पेड़ संरक्षक / आदम भक्षक “
कभी किसी ने पेड़ों का फुसफुसाना सुना है ?
नही सुना तो सुनिए…
ये हौले – हौले आदम की रक्षा की बातें करते हैं
कैसे उनको बचायें धीरे से यही मंत्रणा रचते हैं ,
कभी किसी ने पेड़ों का अफसाना गुना है ?
नही गुना तो गुनिए…
ये सारे सरसरी आवाज़ में बतियाये हैं
अपनी गिनती कम होने की करते शिकायतें हैं ,
कभी किसी ने पेड़ो को आपस में मिलते देखा है ?
नही देखा तो देखिए…
ये भी हमारी तरह एक दूसरे को पास बुलाते हैं
डालियों से गलबहियाँ डाल करते मुलाकातें हैं ,
कभी किसी ने पेड़ो की हॅंसी महसूस किया है ?
नही किया तो किजिए…
ये जब वर्षा होती है तो इनकी बूंदों से तर जाते है
उस वक्त ये जी भर – भर कर खिलखिलाते हैं ,
कभी किसी ने पेड़ो के आसूॅंओं को परखा है ?
नही परखा तो परखिए…
ये चुपचाप खड़े प्रकृति की कीमत लगते देखते हैं
आदम की कृतघ्नता पर हीरे से आसूॅं टपकाते हैं ,
कभी किसी ने पेड़ो को कर्ज उतारते आंका है ?
नही आंका तो आंकिए…
ये धरा को रक्षा के लिए देखते करते चित्कार हैं
इसके घाव पर मरहम लगा क़र्ज़ उतार होते कुर्बान हैं ,
कभी किसी ने आदम जात को जाना है ?
नही जाना तो जानिए…
ये वो जात है जो जिस डाल पर निर्भर करती है
एहसान फरामोश उसी डाल को पल में काट देती है
एहसान फरामोश उसी डाल को पल में काट देती है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 20/08/2021 )