पेड़ न हों तो धरती रोती
पेड़ न हों तो धरती रोती,
पर्यावरणी आभा खोती।
हरे पेड़ का पत्ता पत्ता ,
कार्बन द्वि ऑक्साइड सोखता।
कार्बन कार्बन खुद रख लेता,
ऑक्सीजन वायु में छोड़ता ।
हवा स्वच्छ वृक्षों से होती ——-
पत्ता धरती पर जब गिरता ,
ह्यूमस मिट्टी में तब बनता ।
रोके वर्षा की बूँदों को ,
वृक्ष भूमि की रक्षा करता ।
मिट्टी तब उपजाती मोती ——
वृक्षों से जंगल बनता है ,
जंगल से ईंधन मिलता है ।
वृक्षों की प्राकृत ताकत से,
बादल वर्षा बन गिरता है ।
ईंधन से पकती है रोटी —–
वर्षा हो तो अन्न उपजता ,
वर्षा वृक्ष का अनुदान है ।
यानी मानव के जीवन में,
वृक्षों से सौख्य वरदान है ।
खुशियाँ हैं जंगल की पोती —-
तरुवर कलयुग के शंकर हैं ,
गरल प्रदूषण का जो पीते ।
पर्यावरण शुद्ध रखने को ,
पेड़ लगाओ ईश्वर कहते ।
विनय ‘ हितैषी ‘की ये छोटी —
पेड़ न हों तो धरती रोती ।
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प्रबोध मिश्र ‘ हितैषी ‘
बड़वानी (म. प्र . ) 451 551
मो. 79 74 921 930