पेड़ों को नित काट रहा है
मानव की मनमानी देखो,पेड़ों को नित काट रहा है।
कूड़े ओ करकट से पल-पल,जोहड़ पोखर पाट रहा है।
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पर्यावरण प्रदूषण ही नित
दुनिया में वह बांट रहा है।
जैसे बैठा कोई माली
जड़ से तरु को छांट रहा है।
करके खुद ही सब घोटाले,खुद ही खुद से नाट रहा है।
मानव की मनमानी देखो, पेड़ों को नित काट रहा है।।
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हवा और पानी का संकट
निकट दिखाई देता है अब।
चारों तरफ बबा से मानव
घिरा दिखाई देता है सब।।
खुद ही खुद को गाफिल होकर,वह दीमक सा चाट रहा है।
मानव की मनमानी देखो, पेड़ों को नित काट रहा है।
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