“पेड़ों की छाँव तले”
“पेड़ों की छाँव तले”
पेड़ों की छाँव तले भी पेड़ों को मनुज छले
भूपर जो सीमेंट बिछाया मुझको बहुत खले
छाया आश्रय देकर भी तरु फूले और फले
जब दिनकर की गर्मी से तृण-तृण सभी जले
परम हितैषी पेड़ पुकारे आ जा लग जा गले
पेड़ों की छांव तले भी पेड़ों को मनोज छले
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धूप में टप-टप चुए पसीना पेड़ की छांव में टले
कंकरीट भई गर्म तवा सी जेहि परसत पाँव जले
चढ़ते दिन का सूरज हो या दिनकर शाम ढले
दुश्मन के जैसी गरमी जब छाती पर मूँग दले
तब मंद-मंद जो पवन बहे तो प्यार ही प्यार पले
पेड़ों की छांव तले भी पेड़ों को मनोज छले
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पेड़ और पक्षी के बीच में सदा प्यार ही प्यार पले
फूल पात पक्षी अपशिष्ट दें तरु को पोषण विशिष्ट
पर कंकरीट बिछ जानें पर इनकी नहिं दाल गले
जाति धर्म चाहे कोई भी हो ये सभी को लगें भले
अरु अंत समय में भी हे साथी ! तरु ही साथ जले
पेड़ों की छांव तले भी पेड़ों को मनोज छले