पेड़ों का चित्कार…
मानुष…..
अब अमानुष हों गये
मानवता से दूर हो गये
दरख़्त के साये से
अब कोसों दूर हों गये
कितने निष्ठुरता आ गये लोगों में
अपनी नई चाह लिए
आधुनिकता की चकाचौंध में
निर्मम पेड़ों की कटाई
मानों हम अपने ही जीवन का
कर रहे हैं अंत..
निश्छल प्रेम बरसाने वाले
हर मौसम में सुख देने वाले
कितने उपकार किये हम पर
उऋण नहीं हो सकतें इनसे
पर हम…..
क्या किये जा रहें हैं
मानों अपने ही पैरों पर..
कुल्हाड़ी चलाये जा रहें हैं
उनके मौन पुकार को सुनो
उनके दारूण वेदना को समझो
यदि मनुष्य हो तुम..
तों मनुष्यता का परिचय दो
वरना….
तैयार हो जाओ
तिल-तिल जीने व मरने के लिए..
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Chandra Prakash Patel
Okhar (Masturi)
Distt.-Bilaspur(C.G.)
7879118781