*पेंशन : आठ दोहे*
पेंशन : आठ दोहे
■■■■■■■■■■■■■■■■■■
(1)
पेंशन सबको चाहिए ,सबका यह अधिकार
जब बूढ़ा तन हो गया ,हो जाता बेकार
(2)
सरकारी क्या आम-जन ,सब की पेंशन चाह
नियम बनाओ इस तरह ,खोलो सब की राह
(3)
जीरा मुँह में ऊँट के ,तुच्छ राशि निरुपाय
अच्छी पेंशन दीजिए ,अच्छी जिससे आय
(4)
बंद बुढ़ापे में हुए , दफ्तर और दुकान
अपनी पेंशन हाथ में ,चलते सीना तान
(5)
बेटे-बहुएँ रख रहे ,आवभगत के साथ
देखो-परखो हर तरफ ,पेंशन जिनके हाथ
(6)
पेंशन कभी न बेचिए ,रखिए मोटी आय
दम देगी दमदार ही ,जब होंगे कृश-काय
(7)
व्यापारी खेता रहा ,जीवन-भर परिवार
सोचो पेंशन के बिना ,क्या उसका आधार
(8)
सुखमय यौवन बालपन ,वृद्धावस्था कष्ट
पतन देह-धन का हुआ ,पूॅंजी सारी नष्ट
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
ऊँट के मुँह में जीरा = एक कहावत ,बहुत मामूली धन अथवा वस्तुएँ
निरुपाय = कुछ कर सकने में असमर्थ
आवभगत = खातिरदारी
दमदार = शक्तिशाली
खेता = नाव खेने के संदर्भ में ,पालन-पोषण
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451