‘पृथ्वी दिवस’
‘अर्थ डे’
हे मानव पृथ्वी दिवस पर लौटा सकते हो पृथ्वी माँ को उसका कर्ज या कोई उपहार?
क्या कर्ज उतारोगे ? कर्ज ना भी उतारो तो भी पृथ्वी तुम पर उपकार करना नहीं छोड़ेगी। माँ स्वार्थी नहीं हुआ करती। तुम इतना ही कर दो कि उसे स्वतंत्रता से जीने दो, उसके खून से सींचे हुए हरे भरे वृक्षों को काटकर उसे निर्वस्त्र तो न करो।उसके सीने पर अस्त्र-शस्त्र ,अणु परमाणु का विस्फोट कर उसे रक्त रंजित तो मत करो।
पूरी देह पर कूड़ा-करकट तो मत फैलाओ। अंग अंग में बहती मां गंगा की अमृत जल-धारा में विष तो न घोलो। अनेक जीव जीवन जीते हैं इस धारा में।तुम भी उपयोग करो जी भरकर पर मैला तो न करो। पृथ्वी को स्वच्छ पवित्र रखना तुम्हारा कर्तव्य है। क्या वचन ले सकोगे उसकी सुरक्षा का? वरना कैसा पृथ्वी दिवस?
स्वरचित-
गोदाम्बरी नेगी