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30 Dec 2024 · 1 min read

पूस की रात

बहुत पुरानी बात है ,
पूस की इक रात है ।

ठंड से हड्डियां गल रही थी ,
रात बर्फ में बदल रही थी ।

हल्कू एक किसान था ,
टूटा फूटा मकान था ।

करनी खेत की रखवाली ,
जेब पैसे से थी खाली ।

पास में थे रुपए तीन ,
कर्जदार ले गया छीन ।

खेत पहरेदारी को चलता रहा ,
दीनता के भार से दबता रहा ।

सोचा नया कम्बल लेंगे ,
ग़रीबी ने दिखाये ठेंगे।

रात में ठंड ने हरा दिया ,
गहरी नींद में सुला दिया ।

जबरा खेत में भौकता रहा ,
हल्कू बाग में आग तापता रहा।

नीलगाय फसल बर्बाद कर दिये,
खेत पहरेदारी से आजाद कर दिये ।

परिश्रम के स्वभाव में जीता है ,
किसान अभाव में जीता है ।

मौसम की मार भूला रहता है ,
क़र्ज़ और पसीने में डूबा रहता है ।

नूर फातिमा खातून नूरी
जिला -कुशीनगर

Language: Hindi
17 Views

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