पूर्वज थे हमारे बहुत सयाने
पूर्वज थे हमारे बहुत सयाने
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सुनिए पुराने अजब अफसाने,
पूर्वज थे हमारे बहुत सयाने।
घर मे जब होती मौत विशेष,
तेरह चौदह दिन न हो प्रवेश,
यही तो था आइसोलेशन भेष,
कवॉरंटाइन होता इसी बहाने।
जो जन शव को अग्नि देता,
उसको कभी न कोई छूने देता,
खान पान भी अलग हो जाता,
शुद्धिकरण होता इसी बहाने।
जब माँ बच्चे को थी जनती,
जच्चे बच्चे को कोई न छूती,
इंफेक्शन पीड़ित कोई न हो,
सुरक्षा रीति रिवाजों के बहाने।
बाहर से घर कोई जन आते,
पानी से हाथ पैर थे धुलवाते,
जल हल्दी छिड़काव करवाते
संक्रमण खत्म हो इसी बहाने।
गर कोई संक्रमित हो जाता,
बिन नहाए कोई नहीं छू पाता
सामान्य नुक्ते थे वो वैज्ञानिक,
दुष फैलाव न हो इसी बहाने।
गृह से जब कोई बाहर जाता,
कपूर, हल्दी जेब मे रखवाता,
बदन पर कपूर का लेप होता,
कीटाणु रोधी होते इसी बहाने।
शास्त्रीय – पारंपरिक थी बातें,
पाश्चात्य वाले मजाक उड़ाते,
कोरोना सिद्ध की सब सच्ची,
अपनाए इन्हें हम इसी बहाने।
मनसीरत आ गए वही जमाने।
पूर्वज थे हमारे बहुत सयाने।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)