पूर्ण सत्य
फिर एक सत्य
प्रतियोगिता का आकर्षण
बनाने अपना स्थान
प्रतिष्ठा और पहचान
पाने की लगी दौड़
सत्य पर हो रहा सृजन।
अपने अपने विचार
लिख रहे साहित्यकार
सत्य हो रहा परिभाषित
फिर भी सदा अपरिभाषित
सहारा सिर्फ वैदिक ज्ञान
सभी करते मनन ।
सत्य को किसने देखा
निर्धारित नहीं लेखा
अश्वत्थामा मारा गया
बाद कह दिया हाथी
सत्य को छिपाने तब
शंखनाद हुआ सघन ।
स्वार्थ साधना उद्देश्य
सत्यवादी सहते क्लेश
सभी जानते पूर्ण सत्य
जीवन का अंतिम छोर
जिन्दगी तो जीना है
बदलो अपना रहन सहन ।
राजेश कौरव सुमित्र