” पूर्ण विराम “
ये जीवन है
इस जीवन में
जरा सा
ठहराव चाहिए ,
ज़्यादा नही
पर एक – आध तो
मुझको भी
अर्ध विराम चाहिए ,
शरीर का क्या है
वो तो थकता ही रहता है
लेकिन मेरे मन को
थोड़ा सा आराम चाहिए ,
रिश्ते चाहे थोड़े हों
नही वो टेढ़े मेढ़े हों
ऐसे बेमतलब के रिश्ते
नही बारंबार चाहिए ,
मतलब का सब प्यार है
बड़ा दिखावटी संसार है
जो दुख में साथ दे
ऐसा रिश्तेदार चाहिए ,
जब भी आफत में घबराऊँ
परेशानियों में लड़खड़ाऊँ
गिरने से पहले थाम ले मुझको
ऐसा मुझको यार चाहिए ,
कुछ दिन का ये मेला है
हर कोई अकेला है
इस जीवन के झमेले से
मुझको पूर्ण विराम चाहिए ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 29/07/2020 )