पूर्ण विराग
आधार छंद दोहा
माया ममता मोह मद,सभी सुखों को त्याग ।
वही कृष्ण बनता मनुज, जिसमें पूर्ण विराग।
पग में बंधन मोह का,और सत्य की प्यास,
फँसा हुआ कुरुक्षेत्र में,खेल रहा है फाग ।
मन काला तन श्वेत है,बगुला कपटी अंग,
तन मन दिखता एक सा, उससे अच्छा काग।
जो भी आया है यहाँ, जायेगा सब छोड़,
क्यों फिर मतलब के लिए,देते सबको झाग।
जब तक लिप्सा शेष है,नहीं मिलेगी शांति,
मन में भरा विकार है, जैसे विषधर नाग।
चल नेकी की राह पर,रहो बदी से दूर,
द्वेष-दंभ छल त्याग कर,रखो हृदय बेदाग ।
यह गीता का ज्ञान है,कहता वेद पुराण,
कर्म भाव कुसुमित हृदय,तुष्टि-पुष्टि हर भाग।
माया नगरी है जगत,फसा हुआ हर जीव,
सुखदायी वह जीव है,जहाँ भक्ति की आग ।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली