-: {{ पूर्ण नारीत्व }} :-
मुझे कन्या से हैं ,पूर्ण नारीत्व का है रूप दिया ,
आज मेरे शरीर मे भी ,कुछ परिवर्तन है हुआ ,,
हर माह लड़ती हूँ मैं , खुद के शरीर से गिरते खून से ,
हर गिरते बून्द से है , अपने अस्तित्व को सिद्ध किया ,,
होती है पीड़ा असहनीय मुझे , मस्तिष्क से होती तकरार मुझे ,
लेकिन शर्म नहीं गर्व से , मैंने हैं स्वीकार किया ,,
नव जीवन को सृजन करने , की हैं पूर्व प्रकिर्या ,
भविष्य के किलकारी का , अथक है प्रयास किया ,,
जाने क्यों इसे अछूत – शर्म का , परिचायक मानते है लोग,
क्यों मुझे सीमित कर , मंदिर में जाने से है मना किया ,,
है वो भी एक शक्तिपीठ जिसे , पवित्र मना कर पूजा करते ,
फिर क्यों उसी स्त्री रूप को , अपवित्रता से हैं जोड़ दिया ,,
हो रहा हैं हमेसा से ये , भेद-भाव स्त्री की चेतना के साथ ,
कभी राख तो कभी कोई कपड़े का टुकड़ा, तो कभी घर के बाहर बैठा दिया,,
आज अधर्म की सामाजिकता से , झूझ रहा हैं ये मासिक धर्म ,
इसे घृणा छुआ-छूत की परंपरा में ,लक्ष्मण रेखा में कैद किया ,,
कब दूर होगी ये भ्रंतिया , कब दूर होगी ये परिभाषा ,
इसी मासिक धर्म ने तो मुझे, मातृत्व का हैं अधिकार दिया,,