पूर्णिमा की रात
गीत
पूर्णिमा की रात
कैसा धरा उजाला छाया,
आज चंद्र सह चंद्रिका के,
झूम- झूम के नील गगन पर
नाच -नाच देखो मुस्काया।
रात सुहावन सर सलिल में,
कमल कमलिनी खूब खिले,
थल सुशोभित चंद्रकिरण से,
जल में कलाधर कौमुदी मिले।
सज- सिंगार कर आई चांदनी,
मुख पर श्याम कुंडल की घटा,
प्रीतम चांद की हो मनभावनी,
है धवल रूप मुख अनुपम छटा।
देखो चांद फूला न समाया,
अपनी चंद्रिका को छुप-छुपकर,
मेघराज की ओट में जाकर,
बारम्बार मुख चूम आया ।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर ( हि० प्र०)