पूरे सैंतीस साल।
हंसते खेलते बीत गए आज,
ये पूरे सैंतीस साल,
कभी ढलती धूप कभी चढ़ते सूरज के जैसे,
ये पूरे सैंतीस साल,
कुछ दोस्तों कुछ रिश्तों में सिमटे हुए,
ये पूरे सैंतीस साल,
कड़वी-मीठी यादों में लिपटे हुए,
ये पूरे सैंतीस साल,
जीवन का दिया कोई तोहफा सा लगे,
ये पूरे सैंतीस साल,
ख़ूबसूरत कोई सपना सा लगे,
ये पूरे सैंतीस साल,
जाने कैसे बीत गए “अंबर”,
ये पूरे सैंतीस साल।
कवि- अंबर श्रीवास्तव।