“पूनम का चांद”
पूनम के चांद की यह निर्मल श्वेत चांदनी,
रात्रि की अदभुत सौंदर्य को बढ़ाती है।
कवियों की यह कल्पना है ,
सौंदर्य की सीमाएं पार कर जाती है।
गहरी काली परतों को चीर कर,
आगे निकल जाती है।
विशाल अम्बर का यह आधार बना रहता है,
पूनम का चांद बनने के लिए एक माह मौन रहा करता है।
कृष्ण पक्ष में चांदनी से दूर कल्पना में डूब जाता है,
शुक्ल पक्ष में चांदनी से मिलता है।
उस दिन वह पूनम का चाँद प्रसन्नचित हो जाता है,
क्या ठहरेगी कुछ पल चांदनी, ये चाँद कहता है।
अनुभूति में भीगकर मुस्कराईं चांदनी,
रोम रोम से प्रेम धारा बरसाई चांदनी।
निर्झर प्रेम धारा बरसाया पूनम के चाँद ने,
पूर्णिमा की है बेला , कल से रहूंगा तेरी याद में।
पूनम का चाँद ,चांदनी से भर गया,
बिखरी किरणे, जल गंगा में भर गया।
सुंदर रूप देख पूनम का, चांद घबरा गया,
कही रूप को नजर न लगे,पूनम को छुपा दिया।
काली अंधेरी रात में चाँद रहकर करता था इंतजार,
चांदनी मेरी मिलेगी वो दिन होगा पूनम का चांद।
ए बला के खूबसूरत चाँद,तुझे निहारु,
या तुझ पर कविता,गजल लिख डालूं।
ए मेरे चांद तुझे नभ से चुरा लूं,
बना लूं जीवन साथी, साथ साथ तेरे चलूं।
पूर्णिमा की चांदनी ,खिलती हुई गुलाब,
चांद से मोहब्बत बेपनाह जनाब।
केशराशि को खोलकर हसकर बोली चांद से,
ईश्वर ने दिया मुझे किरणों की सौगात।
पूनम बनी नवेली दुल्हन,चन्दा को पहनाया हार,
झिलमिल तारों की ओढनी, गगन करे श्रृंगार।
छेड़ रही है चांदनी, मिलन की मीठी धुन,
तेरी ही परछाई हूं चाँद , पूनम की सुन।
पूनम का चांद बड़ा ही प्यारा है,
जिससे सारा जग होता उजियारा है।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव ✍️
प्रयागराज