पूज्य पिताजी
उंगलियाँ पकड़कर जो चलना सिखाया ,
फिसलते कदम को संभलना सिखाया ,
न जाने वही आज नाराज क्यूँ हैं.
जलती दुपहरी सा मेरा बदन था ;
लगता था जीवन का अंतिम वो क्षण था,
कंधो पे लादे, कई कोस भागे
जो अपना लहू दे मेरी जान बचाए
न जाने वही आज नाराज क्यूँ है.
खुद भूखे रहकर भी टॉफी ले आना,
हर इक जिद पे मेरी वो सब कुछ लुटाना,
वो गुस्से में आकर छड़ी का उठाना
अगर रो पडूँ, संग वो रो भी जाएँ
ना जाने वही आज नाराज क्यूँ हैं.
न धन के पुजारी न शोहरत की मन्नत
मेरे खिलखिलाहट में जिनका था जन्नत
जो आगाज भी थे जो अंजाम भी थे
मेरे कृष्णा भी जो मेरे राम भी थे
न जाने वही आज नाराज क्यूँ है
चलो पुत्र हूँ मेरी परवाह न करते
मेरे आंसुओं पे वो आहें न भरते,
मगर जिनकी यादें , हर एक मीठी बातें,
हर एक पल हर एक क्षण है माँ को रुलाये
न जाने वही आज नाराज क्यूँ हैं.