पूजा एवं अंधविश्वास
ईश्वर कण कण में व्याप्त है और हम अनंत चैतन्य ईश्वर के ही अंश हैं। समस्त सृष्टि का जन्मदाता वहीं है। उसके प्रति हमारी आस्था ही सही अर्थों में उस पराशक्ति परब्रह्म की पूजा है।भजन, कीर्तन, पूजा-पाठ ईश्वर के गुणगान करने के तरीके हैं और उस परमशक्ति परमेश्वर का जितना भी गुणगान किया जाय कम है।
ईश्वर है यह सत्य है परन्तु वह हमारी क्षूद्र भौतिक मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए है , यह अंधविश्वास है। ईश्वर ने हमें जो कुछ भी दिया है उसके लिए उसकी पूजा करना सही अर्थों में पूजा है। ईश्वर के सत्य स्वरूप का भान कर जो पूजन स्वरूप उसका गुणगान करते हैं, ईश्वर सदैव उनके करीब और वो ईश्वर के अत्यधिक करीब होते हैं लेकिन जो ईश्वर को अपनी भौतिक कामनाओं की पूर्ति का मुख्य स्रोत मानकर उसके इस असत स्वरूप का पूजन करते हैं वो ईश्वर प्राप्ति से कोसों दूर अंधविश्वास रूपी अथाह गहरे सागर में डूब जाते हैं।
ईश्वर कण – कण में वास करता है, हर जीवन में वह अंश रूप में विद्यमान होता है ईश्वर प्रकृति में बास करता है जिस कारण प्रकृति पल प्रति पल नवल रचनाएं करती रहती है। प्रकृति रक्षण भी ईश्वर के पूजन जैसा ही है।
आप और हम मनुष्य हैं जिसके पास तर्कशक्ति है,हम ईश्वर के मामले में पूरी तरह रूढ़िवादी बने रहते हैं। इसकी वजह है ईश्वर को स्वयं खोजने के बजाए दूसरे के बताए गलत रास्तों पर भटक जाना। देखिए रास्ता बताने वाले सही लोग भी हैं गलत भी पर आपकी विवेकशीलता आपको गलत और सही का फर्क बताती है। अपने विवेक को जागृत रखने के लिए उस पर चढ़ी अज्ञान की मोटी चादर को उतार फेंकने की जरूरत है। अज्ञानी बन अंधभक्ति में अंधा बनकर बिना जांचे परखे किसी भी मान्यता के साथ चल पड़ना कदापि उचित नहीं है।
अतः विवेक का पट खोलें और ईश्वर की प्राप्ति के लिए परमात्मा के सत्य स्वरूप को पहचान कर उसका पूजन करें , सत्य जानिए आप खुद को ईश्वर के समीप अति समीप पायेंगे।
आपका:-
पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’