— पूछ उन परिंदों से —
कितना खौफ्फ़ होता है
रात के अँधेरे में
जरा उन से पूछ कर देखो.
उन परिंदों से
जिन के घर नही होते
फिर भी वो हर दुःख सहता है
कितनी सर्द सी वो
रात होती है
जब तन पर कोई लिबास
नही हुआ करता है
मन कितना विचलित होता होगा
जब वो परिंदा
सो भी नही पाता होगा
न कोई पानी देने वाला
न ही दर्द पूछने वाला
कैसी आत्मा परेशां होती होगी
जब आँख से आंसू बहते होंगे
कितने अरमान संजोते होंगे
कितने दर्द वो सहते होंगे
पर पास कोई पूछने वाला नही होता होगा
कितना सुखी है तू इंसान
फिर भी न जाने क्यूं रोता रहता है
सर्द रात में घर से कदम निकाल
कर तो जरा एक बार देख
न हो जाए झ्खझोर दिल तेरा
गर्म और नर्म बिस्तर में
कितने आनंद के साथ तू सोता है
फिर भी न जाने क्यूं तू रोता है
अजीत कुमार तलवार
मेरठ